रविवार, 22 सितंबर 2024

एक विश्वास

तूलिका से बिखरते हुए
भयावह,
किंतु 
सौंदर्य लिए सत्य का
मानव की
रक्त की
पिपासा के प्रतीक
ये रंग
कितने निरीह,
कितने चुप,
किंतु कितने वाचाल।
कब आएगा 
सपनों का सावन
जो आस्था के रंगों को
धोकर निखार दे।
कदाचित कभी नहीं।

किंतु फिर भी
विश्वास है,
एक दिन
किसी
मानवी की आँखों से
बहेगी
ममता की धारा,
उसमें बह जाऐंगे
गुनाहों के दाग़।

उस दिन
संगीत के स्वरों में,
गीतों के बोलों में,
मुखरित होगा
जीवन का संदेश
और तूलिका से
सृजित होगा
नूतन, नवल, इंद्रधनुष।

- विनोद तिवारी
-----------------

अनूप भार्गव की पसंद 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें