छोड़ देगी किनारों को
नदी बहुत चुपके से
ख़ुद को समेट लेगा
भँवर तालों में
असोज आएगा
बहुत चुपके से
सारी नमी सोख जाएगा
बहुत मोहक ढंग से
फैलने लगेगा कुहरा
घाटियों के आर-पार
धरती चुपचाप रहेगी
अपने सीने में
अगली फ़सलों के लिए नमी बचाए
ज़रूरी नहीं हर बार जीता जाए
बेढप मौसमों को
उबलते जज़्बातों से
कभी-कभी बेढप समयों में
नमी को बचा ले जाना भी
गोया अपने भीतर
धरती बचाने जैसा है
- अनिल कार्की
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संपादकीय चयन
बहुत अच्छी कविता, कृपया "असोज आएगा" की व्याख्या टिप्पणी में बताएं इसका संदर्भ समझ नहीं आया ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते प्रज्ञा जी,
जवाब देंहटाएंहिंदी माह अश्विन को मारवाड़ी लोकभाषा में आसोज कहा जाता है। इस समय बारिश की नमी हल्की ठंड में घुलने लगती है। कवि का संकेत इसी ओर है।