बुधवार, 4 सितंबर 2024

नमी

छोड़ देगी किनारों को 
नदी बहुत चुपके से 
ख़ुद को समेट लेगा 
भँवर तालों में 

असोज आएगा 
बहुत चुपके से 
सारी नमी सोख जाएगा 
बहुत मोहक ढंग से 

फैलने लगेगा कुहरा 
घाटियों के आर-पार 
धरती चुपचाप रहेगी 
अपने सीने में 
अगली फ़सलों के लिए नमी बचाए 

ज़रूरी नहीं हर बार जीता जाए 
बेढप मौसमों को 
उबलते जज़्बातों से 

कभी-कभी बेढप समयों में 
नमी को बचा ले जाना भी 
गोया अपने भीतर 
धरती बचाने जैसा है

- अनिल कार्की
----------------

संपादकीय चयन 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता, कृपया "असोज आएगा" की व्याख्या टिप्पणी में बताएं इसका संदर्भ समझ नहीं आया ।

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते प्रज्ञा जी,
    हिंदी माह अश्विन को मारवाड़ी लोकभाषा में आसोज कहा जाता है। इस समय बारिश की नमी हल्की ठंड में घुलने लगती है। कवि का संकेत इसी ओर है।

    जवाब देंहटाएं