दरवाज़े तोड़-तोड़कर
घुस न जाएँ आँधियाँ मकान में,
आँगन की अल्पना सँभालिए।
आई कब आँधियाँ यहाँ
बेमौसम शीतकाल में
झागदार मेघ उग रहे
नर्म धूप के उबाल में
छत से फिर कूदे हैं अँधियारे
चँद्रमुखी कल्पना सँभालिए।
आँगन से कक्ष में चली
शोरमुखी एक खलबली
उपवन-सी आस्था हुई
पहले से और जंगली
दीवारों पर टँगी हुई
पंखकटी प्रार्थना सँभालिए।
- कुँअर बेचैन
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संपादकीय चयन
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