शनिवार, 28 सितंबर 2024

अपने ही मन से कुछ बोलें

क्या खोया, क्या पाया जग में 
मिलते और बिछुड़ते मग में 
मुझे किसी से नहीं शिकायत 
यद्यपि छला गया पग-पग में 
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें 

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी 
जीवन एक अनंत कहानी 
पर तन की अपनी सीमाएँ 
यद्यपि सौ शरदों की वाणी 
इतना काफ़ी है, अंतिम दस्तक पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें 

जन्म-मरण का अविरत फेरा 
जीवन बंजारों का डेरा 
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है 
कौन जानता किधर सवेरा 
अँधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें 
अपने ही मन से कुछ बोलें

- अटल बिहारी वाजपेयी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

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