अनकहे कोमल शब्दों की एक पूरी दुनिया है
जिन्हें मैंने सिर्फ़ तुम्हारे लिए बचाए रखा है
जिसे मैं किसी कविता
किसी गद्य में
अभिव्यक्त करना नहीं चाहता
मुझमें उतरकर तुम
हर रोज़ इन्हें थोड़ा-थोड़ा पढ़ा करो
जैसे ख़ूबसूरत-सी कोई पेंटिंग
दृश्य के बाहर आकर
मन के भीतर उतर आती है
जैसे पके हुए आम में
सूरज चुपचाप उतर आता है
जैसे एकतारा बजाते बाउल गायक के गीतों में
उतर आता है पूरी पृथ्वी का दर्द
जैसे दुख के बाँध टूटते ही
आँखों में नदी उतर आती है।
- आनंद गुप्ता
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संपादकीय चयन
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