तब समझना वह किसी सोच में है
जब वह सोच में है
तब तुम उसकी आँखें पढ़ना
तुम चाहो तो पढ़ सकते हो
उसकी धड़कन
खुश होगी तो ताल में होगी
कोई रंज-ओ-ग़म होगा
तो सूखे पत्तों की तरह काँप रही होगी
तब तुम उसके माथे पर बोसा देना
उसकी आत्मा को नया जीवन देना
नयनों से झर-झर झरेंगे तब आँसू
उन बूँदों का तुम अनुवाद करना
तुम्हारी गिरह में फिर वह स्वतंत्र होगी
हँसेगी, खिलखिलाएगी, उन्मुक्त होगी
रोम-रोम नवगीत कह उठेगा
उस गीत के तुम नायक बनना
देखो! कितना आसान है न
एक स्त्री को समझना
- विशाखा मुलमुले
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संपादकीय चयन
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