गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

हे! मनस्वी मानवी

रज सने पग धर गए वो थान देवालय बनाया।
राजमहलों में न सुख वनवास में एश्वर्य पाया।
तुम 'उपेक्षा' को 'अपेक्षा' में बदलना जानती हो।
हाय! फिर भी बन 'दया का पात्र' जीना चाहती हो।

पूज्य, विदुषी-वामिनी,
अभिनत्व का अवसान लाओ।
तुम नवल उत्थान लाओ!

सोचती हो? मूकदर्शक, ये तुम्हें सहयोग देंगे।
रक्त की अंतिम तुम्हारी बूंद भी वे सोख लेंगे।
बिन कहे कब स्वत्व पाया? माँगना पड़ता यहाँ है।
रो न दे शिशु पूर्व इसके क्षीर भी मिलता कहाँ है!

अब उठो! तेजस्विनी,
स्वयमेव का सम्मान लाओ।
तुम नवल उत्थान लाओ!

भावनी, भव्या, भवानी के हृदय में भय बसेंगे?
चक्षुओं में दीप जिनके क्या उन्हें ये तम डसेंगे?
काल के कटु पृष्ठ पर संभावनाएँ जोड़नी हैं।
तुम वही जिसको समूची वर्जनाएँ तोड़नी हैं।

तमसो मा ज्योतिर्गमय का,
हर्षमय जय-गान लाओ।
तुम नवल उत्थान लाओ!

- इति शिवहरे
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

प्रार्थना

ईश्वर,
ध्यान देना

जब खड़ा होना पड़े मुझे
तो अपने अस्तित्व से ज़्यादा जगह न घेरूँ।

मैं ऋग्वेद के चरवाहों कि करुणा के साथ कहता हूँ,
मुझे इस अनंत ब्रह्मांड में
मेरे पेट से बड़ा खेत मत देना,
हल के भार से अधिक शक्ति,
बैल के आनंद से अधिक श्रम मत देना।

मैं तोलस्तोय के किसान से सीख लेकर कहता हूँ,
मुझे मत देना उतनी ज़मीन
जो मेरे रोज़ाना के इस्तेमाल से ज़्यादा हो,
हद से हद एक चारपाई जितनी जगह
जिसके पास में एक मेज़-कुर्सी आ जाए।

मुझे मेरे ज्ञान से ज़्यादा शब्द,
सत्य से ज़्यादा तर्क मत देना।

सबसे बड़ी बात
मुझे सत्य के सत्य से भी अवगत करवाना।

मुझे मत देना वह
जिसके लिए कोई और कर रहा हो प्रार्थना।

- रचित
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अनूप भार्गव की पसंद 

मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

लेखनी धर्म

शांति से 
रक्षा न हो, 
तो युद्ध में 
अनुरक्ति दे
लेखनी का 
धर्म है, 
युग-सत्य को 
अभिव्यक्ति दे!

छंद-भाषा-भावना 
माध्यम बने 
उद्घोष का
संकटों से 
प्राण-पण से 
जूझने की शक्ति दे!

- शैलेश मटियानी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

द्वंद्व

सूरज भी
अलसाता है
थककर सो जाता है।
इतने विशाल उल्का की रौशनी
अँधेरा पी जाता है।

जीवन और काल
का भी
यही नाता है
एक आता है
एक जाता है
फटी बिवाइयों में
मरहम लग जाता है

काम
और क्रोध में
ज़िंदगी के लोभ में
हर कोई भूल जाता है
सूरज और संध्या का
यही अटूट नाता है।

कुछ भी
रहता नहीं
कुछ भी जाता नहीं
किनारे पे
खड़े-खड़े सब बह जाता है।
आपा-धापी दौड़-धूप लूट-खसोट
दूसरे की ज़मीन पर
महल बनाते-बनाते
अपना ढह जाता है।

- सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

चिड़िया

महत्त्वाकाँक्षाओं की चिड़िया 
औरत की मुंडेर पर आ बैठी है 
दम साध शिकारी ने तान ली है बंदूक 
निशाने पर है चिड़िया 
अगर निशाना चूक गया 
तो औरत मरेगी!

- लीना मल्होत्रा
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

चाँद

खिड़की के रास्ते
उस दिन
चाँद मेरी देहली पर
मीलों की दूरी नापता
तुम्हें छूकर आया

बैठा
मेरी मुँडेर पर
मैंने हथेली में भींचकर 
माथे से लगा लिया।

- सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

यदि मिले अपकर्म से

यदि मिलें अपकर्म से,
उपलब्धियाँ, उपहार मुझको।
यह नहीं स्वीकार मुझको!

मूर्ख महिमासिद्ध हों, गौरवमयी उद्बोधनों से।
व्यक्त कर दूँ कंकरों को, मैं शिखर संबोधनों से।
तब मुझे यश-कीर्ति का दे लोभ, मत, मतिभ्रम बढ़ाओ।
है विनय करबद्ध, ये प्रस्ताव लेकर लौट जाओ।

वेदिका पर पाप की,
यजमान का सत्कार मुझको।
यह नहीं स्वीकार मुझको!

मत बताओ मार्ग मुझको, मैं भटकना चाहती हूँ।
मैं स्वयं के तीर्थाटन पर निकलना चाहती हूँ।
पुष्प सब चुन लो, यही सबसे बड़े अवरोध देंगे।
पथ सजाओ कंटकों से, तीव्र गति ये ही बनेंगे।

रोक सकता है अभी,
कोई मृदुल व्यवहार मुझको!
यह नहीं स्वीकार मुझको!

जो स्वयं को सूर्य समझें, शीत से अविदित नहीं हैं!
बस अभी मेरी उचित पहचान से परिचित नहीं हैं।
यदि उठाई आँख कोई, फिर प्रलय तक आ रुकूँगी।
मैं नदी, नभ तक गई हर बूँद वापस माँग लूँगी।

मैं करूँ निर्माण तब,
निर्वाण का अधिकार मुझको।
है यही स्वीकार मुझको!

- इति शिवहरे 
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

तेरा चुप रहना

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया 
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया 

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ 
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया 

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहज़ा मत पूछ 
उसने जिस-जिसको भी जाने का कहा बैठ गया 

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं 
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया 

उसकी मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने 
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया 

बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ 
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस 
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया

- तहज़ीब हाफ़ी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद