बुधवार, 30 अप्रैल 2025

तीन दोस्त

बात पुरानी है।

तब बस तीन ही रंग थे।


लाल, पीला और नीला!

लाल रहता था हर लज़ीज़ वस्तु में,


जैसे टमाटर, सेब, चेरी और आलूबुख़ारे।

पीले ने बनाया था सूरज को चमकदार


जो मुस्कुराकर देता था रोशनी लगातार।

आसमान भी नीला था और समुंदर भी।


पेड़ों से टपकती बारिश भी नीली ही थी।

तीनों पक्के दोस्त थे।


एक दिन उन्होंने कहा, “हमें और दोस्त चाहिए। चलो नए दोस्त बनाएँ।” और वे निकल पड़े दोस्तों की तलाश में।

और देखो क्या हुआ!


लाल और पीला  साथ चले

तो एक नया दोस्त मिला—नारंगी


पीले और नीले ने हाथ मिलाया

तो एक नया दोस्त मिला—हरा


लाल और नीले के पास आते ही

एक नया दोस्त मिला—बैंगनी


और इस तरह उन्होंने दुनिया को बना दिया दोस्ताना और रंगीन।


-इंदु हरिकुमार

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 




 

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

ओ मेरे विशेषण

 हर विशेषण विशेष्य को कमज़ोर करता है

क्योंकि वह उसे अपना मुहताज बना लेता है

इसीलिए तो, मेरे विशेषण !

तुम मुझसे जीत गए हो

इसीलिए तो तुम हर बार मुँह फ़ाड़ कर हँसते हो

जब मैं तुमसे अपना सिर टकराता हूँ ।

कितनी बड़ी मूर्खता थी यह सोचना कि तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं हूँ

जब कि मैं जो कुछ हूँ, हो सकता हूँ, या होऊँगा

वह उतना ही जितना तुम्हारे बिना हूँ ।

तुम मैं नहीं हो यह ठीक है

तो फिर तुम हो ही क्या

महज़ एक डर, एक संकोच, एक आदत

जिससे मैं चाहे छूट न भी पाऊँ

पर जो मैं नहीं हूँ।


-भारत भूषण अग्रवाल

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- हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

सोमवार, 28 अप्रैल 2025

चौराहा और पुस्तकालय

चौराहे पर खड़ा आदमी
बरसों से,
खड़ा ही है चौराहे पर
टस से मस भी नहीं हुआ!
जबकि—
पुस्तकालय में खड़ा आदमी
खड़े-खड़े ही पहुँच गया
देश-दुनिया के कोने-कोने में
जैसे हवा-सूरज, धूप-पानी
और बादल
फिर भी देश में
सबसे अधिक हैं चौराहे ही।


- खेमकरण ‘सोमन’ 

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-हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

रविवार, 27 अप्रैल 2025

बानी

उसने बानी दिया
जैसे रेत में ढूँढ़कर पानी दिया

उसने बानी दिया
जैसे रमैया से पूछकर
गुरु ग्यानी दिया

उसने बानी दिया
जैसे जीवन को नया मानी दिया

- यतीन्द्र मिश्र

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 


शनिवार, 26 अप्रैल 2025

जो शिलाएँ तोड़ते हैं

ज़िंदगी को
वह गढ़ेंगे जो शिलाएँ तोड़ते हैं,
जो भगीरथ नीर की निर्भय शिराएँ मोड़ते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
ज़िंदगी को
वे गढ़ेंगे जो खदानें खोदते हैं,
लौह के सोए असुर को कर्म-रथ में जोतते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
ज़िंदगी को
वे गढ़ेंगे जो प्रभंजन हाँकते हैं,
शूरवीरों के चरण से रक्त-रेखा आँकते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
ज़िंदगी को
वे गढ़ेंगे जो प्रलय को रोकते हैं,
रक्त से रंजित धरा पर शांति का पथ खोजते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
मैं नया इंसान हूँ इस यज्ञ में सहयोग दूँगा।
ख़ूबसूरत ज़िंदगी की नौजवानी भोग लूँगा।

- केदारनाथ अग्रवाल

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- हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 
 

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

जागो, हे गीत-पुरुष ! माँग है समय की

 जागो, हे गीत-पुरुष !
माँग है समय की ।
सम्भले कुछ बिगड़ी गति
छन्द और लय की !
सोने का समय नहीं
यह जाग्रति-वेला
चहल-पहल, कलरव का
लगना है मेला
क्षितिज बाट जोह रहा
बस सूर्योदय की !
बीत गया शीत
हुआ सूर्य उत्तरायण
शरशैया छोड़ो
सम्वेदना-परायण
करनी है यात्रा
ब्रह्माण्ड के वलय की !
तिमिस्रान्ध वसुधा पर
भोर नई जागे
फैले आलोक
धुन्ध, अन्धकार भागे
प्रसरित हो गन्ध चतुर्दिक
प्रभा मलय की !
रचनी है एक नई
सृष्टि छन्दधर्मी
रँगों का इन्द्रधनुष
बुनो, रँगकर्मी !
नभ गाथा बाँचेगा
पुनः दिग्विजय की !
है किंकर्तव्य समय
कुछ न सूझ पड़ता
शिलीभूत हिम पिघले
टूटे हर जड़ता
लाज रखो इस अधीर
युग के अनुनय की !
शब्दों को मिले अर्थ
अभिप्राय, आशय
क्षुधा को प्रभूत अन्न
तृषा को जलाशय
दिव्यता मिले मन को
भव्य हिमालय की !

- योगेन्द्र दत्त शर्मा

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- हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 


गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

विभाजन

तुमने सारे ठाठ इस आधार पर बनाए थे
कि एक की विजय
और दूसरे की पराजय होगी
तुमने दुनिया के लोगों को
या तो शत्रु समझा
या फिर मित्र
यानी तुम दो की सत्ता में विश्वास करते रहे
यह भूलकर
कि यह विभाजन दुनिया का नहीं
तुम्हारे मन का अपना है--।

- भारत भूषण अग्रवाल

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- हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

 

बुधवार, 23 अप्रैल 2025

पीली साड़ियाँ

हर शाम मेरी माँ बहुत अच्छे-से सजती है

महज़ एक पुरानी क्रीम, चुटकी-भर टैल्कम पाउडर की मदद से


पीले रंग की एक साड़ी पहन उस जगह आ बैठती है

जहाँ किताबें पढ़ते हैं पिता मूर्तियों की तरह तल्लीन


अपनी मद्धम आवाज़ में वह कुछ कहती है

दिन-ब-दिन बहरे होते पिता नहीं सुनते


माँ बुदबुदाती है, जब कान थे, तब भी नहीं सुना,

अब क्या सुनेंगे, पकल नींबुओं जैसी इस उम्र में


उनका ध्यान खींचने के लिए चोरी से

स्टील का एक गिलास गिरा देती है वह टेबल से


सिर उठा देखते हैं पिता, उनकी आँखें चमक जाती हैं

आधी सदी बीत चुकी है शाम के इस कारोबार में


पीला, ऊर्जा व सोहाग का रंग है, तुम पर बहुत फबता है

कहते हैं वह, अपनी सुनहरी दलीलों की ओट में मुस्कुराते


जबकि मैं जानता हूँ, जिन जगहों से आए हैं पिता

वहाँ दूर-दूर तक फैले होते थे सरसों के पीले खेत


जब आँचल लहराती है मेरी माँ, लहरों से भर जाता है

पीले रंग का एक समुद्र : शाम की वह सूरजमुखी शांति


मेरी माँ ने ताउम्र महज़ पीली साड़ियाँ पहनीं

ताकि हर शाम अपने बचपन में लौट सकें मेरे पिता

 

- गीत चतुर्वेदी

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

अभ्यस्त हूँ

तुम्हारे नहा लेने के बाद,
तुम्हारे भीगे तौलिये से अपना बदन पोंछना,
तुम्हारा स्पर्श पा लेने जैसा है,
ज़िंदगी के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच ये मेरे रोज़ का एक हिस्सा है।
तुम्हारे खा चुकने के बाद,
थाली में बचे हुए ज़रा से अन्न का निवाला,
चाव से खाना,
जैसे तुम्हारे हाथों का कौर ही हो
मेरे लिए प्रेम यही तो है।
साँझ ढले तुम्हारे काम से लौट आने के बाद,
तुम्हारी क़मीज़ से आती हुई पसीने की गंध को
धुलने से पहले,
अपने सीने से लगाना,
यह गंध मेरे लिए हरसिंगार के फूलों की गंध-सी होती है।
मैं अभ्यस्त हूँ इन तमाम कामों की,
जैसे रोज़ सूरज के उगने की…
मैं बेहद क़रीब हूँ, तुम्हारे पसीने की गंध वाली क़मीज़ के,
बेहद क़रीब हूँ मैं, तुम्हारे भीगे तौलिये के स्पर्श के।
तुम्हारी घड़ी और मोज़े सँभाल कर
रोज़ उन्हें ठीक जगह पर रख देना,
मेरे लिए प्रेम कर लेना है।

- अंकिता शाम्भवी

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- अनूप भार्गव की पसंद 

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

प्रार्थना

 मैंने पूछा :

यदि मैं मर गया

अर्थी को कन्धा मिलेगा

मेरी क़ब्र सुनेगी क्या

प्रार्थना के दो शब्द...।


उत्तर मिला --

फ़ातिहा कौन पढ़ेगा...?


- धनंजय वर्मा

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-हरप्रीत सिंह पुरी को पसंद 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

हिंदुस्तान सबका है

 न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है

नहीं समझी गई ये बात तो नुक़सान सबका है


हज़ारों रास्ते खोजे गए उस तक पहुँचने के

मगर पहुँचे हुए ये कह गए भगवान सबका है


जो इसमें मिल गईं नदियाँ वे दिखलाई नहीं देतीं

महासागर बनाने में मगर एहसान सबका है


ज़रा-से प्यार को खुशियों की हर झोली तरसती है

मुक़द्दर अपना-अपना है, मगर अरमान सबका है


'उदय' झूठी कहानी है सभी राजा और रानी की

जिसे हम वक़्त कहते हैं वही सुल्तान सबका है


- उदय प्रताप सिंह

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

जय जय जय बस बोल जमूरे

आँख मींच ले सच्चाई पर,

मत होंठो को खोल जमूरे।


प्रश्न, नहीं हैं जिनके उत्तर

उन प्रश्नों पर कान नहीं दे।

आत्म मुग्ध हो सुनते जाना,

निंदाओं पर ध्यान नहीं दे।


डाल बुद्धि पर

कुलुफ़ कड़ा तू,

जय-जय-जय बस बोल जमूरे।


उसके सिर रख इसकी टोपी,

ख़ूब अफ़र कर पल्लेदारी।

दरबारी रागों को गाकर,

पुख़्ता कर ले दावेदारी।


दबा काँख में

भले कटारी,

मुँह में मिश्री घोल जमूरे।


समाधान की बात करें जो,

उन क़लमों की नोक तोड़ दे।

समरसता के गीत पढ़ें जो,

उनकी दुखती रग मरोड़ दे।


भली करेंगे राम

फोड़ तू,

सद्भावों के ढोल जमूरे।


- अनामिका सिंह

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

बुधवार, 16 अप्रैल 2025

क़ातिल मिसाल देता है

वो मिल के ग़ैर से ग़म को उबाल देता है

कि मेरी आंखों से दरिया निकाल देता है


तू इंसां होके भी मायूस उसकी रहमत से

जो एक कीड़े को पत्थर में पाल देता है


मैं इस अदा से हुई क़त्ल उसके हाथों से

मेरे तड़पने की क़ातिल मिसाल देता है


वो इक फ़क़ीर जो कासे को उल्टा रखता है

अमीर ए शहर को मुश्किल में डाल देता है


बंधी हैं उसके ही दामन से मेरी उम्मीदें

जो मेरे दिल को हवा में उछाल देता है


- नुजहत अंजुम

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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

दावा

पथरिया पहाड़ी की ऊँचाई पर

आज हम

उन्नत मन, उन्नत सिर

नीचे गहरी खाई को

हिकारत से देखते हैं ।


धरती ने

गहरी खाई तक धँस कर

हमें यह ऊँचाई दी है...।


ताल ठोंक कर

खाई पर दावा है,

हम उससे ऊँचे हैं... ।


- धनंजय वर्मा

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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से  

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

आत्मावलंबन

 उसने कहा

क्या नाज़ है?

मैंने कहा 

हाँ बेशक!


चेहरे का रंग बदल जाता है

आँखों की पुतलियाँ धूमिल हो जाती हैं


नहीं बदलता

तो, मन का शफ्फाक रंग

बहता है निष्कलंक 

गंगा की तरह


खनखनाता है

कौड़ियों की तरह


वही सत्य है

वही सुंदर 

सौंदर्य आत्मावलंबन में है

हार जाने में नहीं!


नीना सिन्हा

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-हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

रविवार, 13 अप्रैल 2025

टूटा पहिया

मैं 
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ 
लेकिन मुझे फेंको मत ! 

क्या जाने कब 
इस दुरूह चक्रव्यूह में 
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ 
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय ! 

अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी 
बड़े-बड़े महारथी 
अकेली निहत्थी आवाज़ को 
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें 
तब मैं 
रथ का टूटा हुआ पहिया 
उसके हाथों में 
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ ! 
मैं रथ का टूटा पहिया हूँ 

लेकिन मुझे फेंको मत 
इतिहासों की सामूहिक गति 
सहसा झूठी पड़ जाने पर 
क्या जाने 
सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !

 -धर्मवीर भारती

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-हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

वासना

 आँच में तपकर

दूध उफना

आग ने पी लिया

एक सोंधी महक

माहौल में समा गई ।


वासना का ज्वार

संयम की सीमाएँ तोड़

उफना

दमित आकांक्षा ने तृप्ति पाई

एक दर्द मीठा-सा

मन में जगा

भला लगा ।


दूध चुक गया

वासना बुझ न पाई...।


- धनंजय वर्मा

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

ऊन के गोले

 कहाँ गए वह ऊन के गोले
जिनमें धँसा के रखती थी माँ दो सलाइयाँ 
जहाँ भी जाती, साथ ही रखती
रोज़ दुपहरी चौक में बैठी
धूप के धागों से वह बुनती थी गरमाहट
जैसे अंगुलियाँ वादक की
वीणा पर है किसी राग को बुनती
वैसी ही गति से, लय से
तुम भी अपना सपना बुनती थी
सोचता हूँ मैं
इससे तेज क्या बुनता होगा
ब्रह्मा सृष्टि के धागों को
पूरा होने पर स्वैटर के
घर में हमारे उत्सव होता
पहन के उसको मैं इतराता
सबको दिखाता
पाँव न होते ज़मीं पर मेरे
मानो माँ ने उस स्वैटर में पंख लगाए
हम चार थे
चारों के बारी-बारी से
पहने जाने पर भी
कुछ कम ना होता उसका नयापन
और जो गरमाहट चारों की 
एक ही कोख से जन्मी थी 
वो कैसे कम हो जाती उसमें? 
अब तो बहुत से स्वैटर 
घर में भरे पड़े हैं
पर कहीं न दिखते
ऊन के गोले, चारों भाई और सलाई पर माँ?

- नितेश व्यास

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

हे! मनस्वी मानवी

रज सने पग धर गए वो थान देवालय बनाया।
राजमहलों में न सुख वनवास में एश्वर्य पाया।
तुम 'उपेक्षा' को 'अपेक्षा' में बदलना जानती हो।
हाय! फिर भी बन 'दया का पात्र' जीना चाहती हो।

पूज्य, विदुषी-वामिनी,
अभिनत्व का अवसान लाओ।
तुम नवल उत्थान लाओ!

सोचती हो? मूकदर्शक, ये तुम्हें सहयोग देंगे।
रक्त की अंतिम तुम्हारी बूंद भी वे सोख लेंगे।
बिन कहे कब स्वत्व पाया? माँगना पड़ता यहाँ है।
रो न दे शिशु पूर्व इसके क्षीर भी मिलता कहाँ है!

अब उठो! तेजस्विनी,
स्वयमेव का सम्मान लाओ।
तुम नवल उत्थान लाओ!

भावनी, भव्या, भवानी के हृदय में भय बसेंगे?
चक्षुओं में दीप जिनके क्या उन्हें ये तम डसेंगे?
काल के कटु पृष्ठ पर संभावनाएँ जोड़नी हैं।
तुम वही जिसको समूची वर्जनाएँ तोड़नी हैं।

तमसो मा ज्योतिर्गमय का,
हर्षमय जय-गान लाओ।
तुम नवल उत्थान लाओ!

- इति शिवहरे
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

प्रार्थना

ईश्वर,
ध्यान देना

जब खड़ा होना पड़े मुझे
तो अपने अस्तित्व से ज़्यादा जगह न घेरूँ।

मैं ऋग्वेद के चरवाहों कि करुणा के साथ कहता हूँ,
मुझे इस अनंत ब्रह्मांड में
मेरे पेट से बड़ा खेत मत देना,
हल के भार से अधिक शक्ति,
बैल के आनंद से अधिक श्रम मत देना।

मैं तोलस्तोय के किसान से सीख लेकर कहता हूँ,
मुझे मत देना उतनी ज़मीन
जो मेरे रोज़ाना के इस्तेमाल से ज़्यादा हो,
हद से हद एक चारपाई जितनी जगह
जिसके पास में एक मेज़-कुर्सी आ जाए।

मुझे मेरे ज्ञान से ज़्यादा शब्द,
सत्य से ज़्यादा तर्क मत देना।

सबसे बड़ी बात
मुझे सत्य के सत्य से भी अवगत करवाना।

मुझे मत देना वह
जिसके लिए कोई और कर रहा हो प्रार्थना।

- रचित
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अनूप भार्गव की पसंद 

मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

लेखनी धर्म

शांति से 
रक्षा न हो, 
तो युद्ध में 
अनुरक्ति दे
लेखनी का 
धर्म है, 
युग-सत्य को 
अभिव्यक्ति दे!

छंद-भाषा-भावना 
माध्यम बने 
उद्घोष का
संकटों से 
प्राण-पण से 
जूझने की शक्ति दे!

- शैलेश मटियानी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

द्वंद्व

सूरज भी
अलसाता है
थककर सो जाता है।
इतने विशाल उल्का की रौशनी
अँधेरा पी जाता है।

जीवन और काल
का भी
यही नाता है
एक आता है
एक जाता है
फटी बिवाइयों में
मरहम लग जाता है

काम
और क्रोध में
ज़िंदगी के लोभ में
हर कोई भूल जाता है
सूरज और संध्या का
यही अटूट नाता है।

कुछ भी
रहता नहीं
कुछ भी जाता नहीं
किनारे पे
खड़े-खड़े सब बह जाता है।
आपा-धापी दौड़-धूप लूट-खसोट
दूसरे की ज़मीन पर
महल बनाते-बनाते
अपना ढह जाता है।

- सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

चिड़िया

महत्त्वाकाँक्षाओं की चिड़िया 
औरत की मुंडेर पर आ बैठी है 
दम साध शिकारी ने तान ली है बंदूक 
निशाने पर है चिड़िया 
अगर निशाना चूक गया 
तो औरत मरेगी!

- लीना मल्होत्रा
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

चाँद

खिड़की के रास्ते
उस दिन
चाँद मेरी देहली पर
मीलों की दूरी नापता
तुम्हें छूकर आया

बैठा
मेरी मुँडेर पर
मैंने हथेली में भींचकर 
माथे से लगा लिया।

- सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

यदि मिले अपकर्म से

यदि मिलें अपकर्म से,
उपलब्धियाँ, उपहार मुझको।
यह नहीं स्वीकार मुझको!

मूर्ख महिमासिद्ध हों, गौरवमयी उद्बोधनों से।
व्यक्त कर दूँ कंकरों को, मैं शिखर संबोधनों से।
तब मुझे यश-कीर्ति का दे लोभ, मत, मतिभ्रम बढ़ाओ।
है विनय करबद्ध, ये प्रस्ताव लेकर लौट जाओ।

वेदिका पर पाप की,
यजमान का सत्कार मुझको।
यह नहीं स्वीकार मुझको!

मत बताओ मार्ग मुझको, मैं भटकना चाहती हूँ।
मैं स्वयं के तीर्थाटन पर निकलना चाहती हूँ।
पुष्प सब चुन लो, यही सबसे बड़े अवरोध देंगे।
पथ सजाओ कंटकों से, तीव्र गति ये ही बनेंगे।

रोक सकता है अभी,
कोई मृदुल व्यवहार मुझको!
यह नहीं स्वीकार मुझको!

जो स्वयं को सूर्य समझें, शीत से अविदित नहीं हैं!
बस अभी मेरी उचित पहचान से परिचित नहीं हैं।
यदि उठाई आँख कोई, फिर प्रलय तक आ रुकूँगी।
मैं नदी, नभ तक गई हर बूँद वापस माँग लूँगी।

मैं करूँ निर्माण तब,
निर्वाण का अधिकार मुझको।
है यही स्वीकार मुझको!

- इति शिवहरे 
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

तेरा चुप रहना

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया 
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया 

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ 
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया 

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहज़ा मत पूछ 
उसने जिस-जिसको भी जाने का कहा बैठ गया 

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं 
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया 

उसकी मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने 
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया 

बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ 
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस 
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया

- तहज़ीब हाफ़ी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद