सोमवार, 1 अप्रैल 2024

मेरे स्वर में स्वर यदि दोगे

मेरे स्वर में स्वर यदि दोगे 
मैं नभ में गायन भर दूँगा

आज अकेले का बल क्या है 
बलि देने का ही फल क्या है 
एकाकी हूँ मैं वन-पथ पर 
आज क्षरण, जाने कल क्या है 

मेरे कर में कर यदि दोगे 
मैं अनंत यौवन वर लूँगा 

बड़ी-बड़ी अभिलाषाएँ हैं
खंडित सारी आशाएँ हैं 
अधर-अधर ने गरल पिया है 
दलित सत्य की भाषाएँ हैं 

मुझे समर के शर यदि दोगे 
मैं संसृति का दुख हर लूँगा 

- कृष्ण मुरारी पहारिया।
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