मेरे स्वर में स्वर यदि दोगे
मैं नभ में गायन भर दूँगा
आज अकेले का बल क्या है
बलि देने का ही फल क्या है
एकाकी हूँ मैं वन-पथ पर
आज क्षरण, जाने कल क्या है
मेरे कर में कर यदि दोगे
मैं अनंत यौवन वर लूँगा
बड़ी-बड़ी अभिलाषाएँ हैं
खंडित सारी आशाएँ हैं
अधर-अधर ने गरल पिया है
दलित सत्य की भाषाएँ हैं
मुझे समर के शर यदि दोगे
मैं संसृति का दुख हर लूँगा
- कृष्ण मुरारी पहारिया।
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