धूप धरा पर उतरी
जैसे शिव के जटाजूट पर
नभ से गंगा उतरी।
धरती भी कोलाहल करती
तम से ऊपर उभरी
धूप धरा पर बिखरी
बरसी रवि की गगरी,
जैसे ब्रज की बीच गली में
बरसी गोरस गगरी।
फूट-कटोरों-सी मुस्काती
रूप-भरी है नगरी
धूप धरा पर बिखरी
- केदारनाथ अग्रवाल।
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