बुधवार, 3 अप्रैल 2024

पहाड़ों के अप्रैल के ज़ख़्मों का क़सीदा

कतारबद्ध भिक्षुओं की तरह विनम्र खड़े 
सात काफल के पेड़ों पर फल आ चुके हैं।
सुर्ख लाल फूलों से लदे बुरांश की सघनता में 
एक मुनाल टहनियों पर फुदक रहा है।
बांज के जंगलों की गहरी छाया में 
झींगुरों की एकरस आवाज़ें हैं।
चिंतनरत सरू और देवदारु के 
पेड़ों के बीच से झाँकती हैं बर्फीली चोटियांँ
रह-रहकर बादल उन्हें छेड़ रहे हैं

पहाड़ों में अप्रैल के सुनसान में 
प्यार करने,
बेवफ़ाइयों की विवशता को याद करने 
और टीसते हृदय में 
तपती चमकती कटार घोंपकर 
हाराकीरी करने के बारे में 
सोचा जा सकता है
एक विचारहीन साहस और वैराग्य भाव की
गिरफ़्त में फँसकर।

सहसा बज उठता है मोबाइल 
मानवीय तुच्छताओं की याद दिलाते हुए,
एक दार्शनिक मृत्यु और स्वार्थपूर्ण प्यार के 
ऐन्द्रजालिक आकर्षण से उबारते हुए 
और यह याद दिलाते हुए कि 
कल सुबह नीचे मैदानों की ओर रवाना हो जाना है 
जीवन की ठोस वास्तविकताओं की ओर।

तुच्छताओं के बीच 
उदात्तता की खोज जारी रहे 
और जीवन में थोड़ी कविता 
हर सूरत में बची रहे,
ऐसा सोचना भी 
इतिहास-बोध का ही एक हिस्सा है।

- कात्यायनी।
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  • काफल - पहाड़ का एक फल जो बेर जैसा होता है।
  • मुनाल - एक पक्षी
  • बांज - पहाड़ में एक वृक्ष का नाम जैसे चीड़, देवदार।
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विजया सती के सौजन्य से।

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