छंद को बिगाड़ो मत, गंध को उजाड़ो मत
कविता-लता के ये सुमन झर जाएँगे।
शब्द को उघाड़ो मत, अर्थ को पछाड़ो मत,
भाषण-सा झाड़ो मत गीत मर जाएँगे।
हाथी-से चिंघाड़ो मत, सिंह से दहाड़ो मत
ऐसे गला फाड़ो मत, श्रोता डर जाएँगे।
घर के सताए हुए आए हैं बेचारे यहाँ
यहाँ भी सताओगे तो ये किधर जाएँगे।
- ओम प्रकाश 'आदित्य'।
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
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