गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

कृतज्ञता

धूप और गरमी में तपता 
पसीने से लथपथ 
वह उस वृक्ष की छाया तले पहूँचा। 
छाया क्या थी। 
जल था, 
टिका दी तने से कुल्हाड़ी 
और गमछा बिछा लेट गया 
निश्चिंत। 

नींद जब खुली 
पहर ढल रहा था, 
वह हड़बड़ाता उठा 
और लगा पेड़ काटने।

 - श्रीनरेश मेहता।
------------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें