धूप और गरमी में तपता
पसीने से लथपथ
वह उस वृक्ष की छाया तले पहूँचा।
छाया क्या थी।
जल था,
टिका दी तने से कुल्हाड़ी
और गमछा बिछा लेट गया
निश्चिंत।
नींद जब खुली
पहर ढल रहा था,
वह हड़बड़ाता उठा
और लगा पेड़ काटने।
- श्रीनरेश मेहता।
------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें