उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
- वसीम बरेलवी।
------------------
अनूप भार्गव की पसंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें