मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा

अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा

- वसीम बरेलवी।
------------------

अनूप भार्गव की पसंद 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें