रविवार, 14 अप्रैल 2024

इक नज़्म

ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस राह पे हाथ छुड़ाकर तुम
यूँ तन तन्हा चल निकली हो
इस खौफ़ से शायद राह भटक जाओ ना कहीं
हर मोड़ पर मैंने नज़्म खड़ी कर रखी है!

थक जाओ अगर-
और तुमको ज़रूरत पड़ जाए,
इक नज़्म की ऊँगली थाम के वापस आ जाना!

- गुलज़ार।
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