रविवार, 7 अप्रैल 2024

तू इतना प्यार न कर मुझसे

तू इतना प्यार न कर मुझसे 
जो ख़ुद से मिलने को तरसूँ! 

जो प्यारी लगे सभी को ही 
मैं ऐसी कोई बात नहीं 
हूँ मरुस्थल की सूखी रेती 
मैं मेघ बनूँ औक़ात नहीं 

पर मेघ बनूँ तो यह मन है 
तेरे घर-आँगन में बरसूँ! 

तू इतना प्यार न कर मुझसे 
जो ख़ुद से मिलने को तरसूँ! 

पानी था, लेकिन दुनिया ने 
कह दिया मुझे पत्थर-काया 
सबकी नज़रों का काँटा मैं 
खिलकर भी फूल न बन पाया 

हाँ, अगर कभी मैं फूल बनूँ 
तेरी फुलबग़िया में सरसूँ! 

तू इतना प्यार न कर मुझसे 
जो ख़ुद से मिलने को तरसूँ!

- कुँअर बेचैन।
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