मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

त्रिवेणी

1. सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की
मुस्कराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर

कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।

2. शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुमको

तिनकों का मेरा घर है, कभी आओ तो क्या हो?

3. आप की खा़तिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ
क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के!

चाँद चुभ जाएगा 
ऊँगली में तो ख़ून आ जाएगा।

4. वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन
जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था

फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।

5. तुम्हारे होंठ बहुत खु़श्क खु़श्क रहते हैं
इन्हीं लबों पे कभी ताज़ा शे’र मिलते थे

ये तुमने होंठों पे अफसाने रख लिए कब से?

- गुलज़ार
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या बात है !
    इन पंक्तियों को पढ़ना जिंदगी से गुजरना है भरपूर !
    शुक्रिया चयनकर्ता !
    शुक्रिया टीम !!

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  2. डॉ वीणा विज 'उदित'--बहुत खूब! गुलजार साहब के शे'र माशाल्लाह! सुभानल्लाह

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