यह वक्त शब्दों के दीए जलाने का है
कहा एक कवि ने
और मैंने सचमुच एक दीया जलाकर
आँगन में रख दिया
वह लड़ता रहा अँधेरे से
लड़ता रहा आँधियों से
लड़ता रहा एक पूरी रुत से
और धीरे-धीरे
मेरे जिस्म में एकाकार हो गया
अब मेरे हर शब्द में है एक मशाल
और शब्द निकले हैं सफ़र पर।
- गुरमीत बेदी
---------------
हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें