नक़्श की तरह उभरना भी तुम्हीं से सीखा
रफ़्ता रफ़्ता नज़र आना भी तुम्हीं से सीखा
तुम से हासिल हुआ इक गहरे समुंदर का सुकूत
और हर मौज से लड़ना भी तुम्हीं से सीखा
अच्छे शेरों की परख तुम ने ही सिखलाई मुझे
अपने अंदाज़ से कहना भी तुम्हीं से सीखा
तुम ने समझाए मिरी सोच को आदाब अदब
लफ़्ज़ ओ मअनी से उलझना भी तुम्हीं से सीखा
रिश्ता-ए-नाज़ को जाना भी तो तुम से जाना
जामा-ए-फ़ख़्र पहनना भी तुम्हीं से सीखा
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था
पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्हीं से सीखा
- ज़ेहरा निगाह
----------------
हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें