बादल को बाँहों में भर लो
एक और अनहोनी कर लो!
अंगों में बिजलियाँ लपेटो,
चरणों मे दूरियाँ समेटो;
नभ की पदचापों से भर दो
ओ दिग्विजयी मनु के बेटो!
इंद्रधनुष कंधों पर धर लो!
एक और अनहोनी कर लो!
अंतरिक्ष घर है तो डर क्या?
नीचे-ऊपर, इधर-उधर क्या?
साँसों में भर गईं दिशाएँ
फिर क्या भीतर है, बाहर क्या?
तारों की सीढ़ियाँ उतर लो!
एक और अनहोनी कर लो!
शीत-ताप हीन करो तन को,
करने दो प्रतीक्षा मरण को;
शीशे के ट्यूबों में भर लो
भटक रहे आवारा मन को!
ईथर में डूब लो, उभर लो!
एक और अनहोनी कर लो!
पथ पर वे बीते क्षण छूटे,
सीमांतों वाले पुल टूटे;
टूटी मेहराबों के नीचे
धारा में बहे स्वप्न झूठे।
रंगहीन किरण से सँवर लो!
एक और अनहोनी कर लो!
- शंभुनाथ सिंह
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
एक और अनहोनी कर लो, प्रकृति के प्रति संवेदनाएं अति प्रभावशाली!
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