गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025

पत्र तुम्हारे नाम

सुर्ख सुबह
चंपई दुपहरी
रंग रंग से लिख जाता मन
पत्र तुम्हारे नाम

बाहों के ख़ालीपन पर यह
बढ़ता हुआ दवाब
चहरे पर थकान के जाले
बुनता हुआ तनाव
बढ़ने लगे देह से लिपटी
यादों के आयाम

घबराहट भरती चुप्पी ने
नाप लिया है दिन
पत्थर-पत्थर हुए जा रहे
हाथ कटे पलछिन
मिटते नहीं मिटाए अब तो
होंठो लगे विराम

- सोम ठाकुर
--------------

संपादकीय चयन 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें