उसने मिट्टी को छुआ भर था
धरती ने उसे सीने से लगा लिया
उसने पौधे लगाए
ख़ुश्बू उसकी बातों से आने लगी
पेड़ समझने लगे उसकी भाषा
फल ख़ुद-ब-ख़ुद
उसके पास आने लगे
पक्षी और पशु तो
सगे-सहोदर से बढ़कर हो गए
जो मुश्किल भाँपते ही नहीं
उन्हें दूर करने की राह भी सुझाते हैं
मैने पूछा भाई प्रेम सिंह!
क्या कुछ खास हो रहा है इन दिनों
खिलखिला पड़े वो
कहने लगे,
लोग जिस स्वर्ग की तलाश में हैं
मैं वही बनाने में जुटा हूँ
- प्रताप सोमवंशी
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संपादकीय चयन
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