बुधवार, 6 सितंबर 2023

संभावनाएँ

लगभग मान ही चुका था मैं 
मृत्यु के अंतिम तर्क को 
कि तुम आए 
और कुछ इस तरह रखा 
फैलाकर 
जीवन के जादू का 
भोला-सा इंद्रजाल 
कि लगा यह प्रस्ताव 
ज़रूर सफल होगा।

ग़लतियाँ ही ग़लतियाँ थी उसमें 
हिसाब-किताब की, 
फिर भी लगा 
गलियाँ ही गलियाँ हैं उसमें 
अनेक संभावनाओं की 
बस, हाथ भर की दूरी पर है, 
वह जिसे पाना है। 
ग़लती उसी दूरी को समझने में थी।

- कुँवर नारायण।

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