जोमेरेघरकभीनहींआएँगे
मैंउनसेमिलने
उनकेपासचलाजाऊँगा।
एकउफनतीनदीकभीनहींआएगीमेरेघर
नदीजैसेलोगोंसेमिलने
नदीकिनारेजाऊँगा
कुछतैरूँगाऔरडूबजाऊँगा
पहाड़,टीले,चट्टानें,तालाब
असंख्यपेड़खेत
कभीनहींआएँगेमेरेघर
खेत-खलिहानोंजैसेलोगोंसेमिलने
गाँव-गाँव,जंगल-गलियाँजाऊँगा।
जोलगातारकाममेंलगेहैं
मैंफ़ुरसतसेनहीं
उनसेएकज़रूरीकामकीतरह
मिलतारहूँगा-
इसेमैंअकेलीआख़िरीइच्छाकीतरह
सबसेपहलीइच्छारखनाचाहूँगा।
- विनोद कुमार शुक्ल।
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सोचनीय, भावुक🙏🙏
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