गुरुवार, 14 सितंबर 2023

ओ मेरी भाषा

जैसे चींटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा।

- केदारनाथ सिंह।
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अनूप भार्गव और स्वरांगी साने की पसंद

3 टिप्‍पणियां:

  1. कितना सुन्दर, विश्वसनीय आसरा...!

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  2. आत्मसात होती हुई सी रचना।
    आत्मिक सुख -चैन दिलाती,
    होंठों पर मुस्कान लाती
    "मेरी भाषा" को सादर नमन।

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