जैसे चींटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा।
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा।
- केदारनाथ सिंह।
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अनूप भार्गव और स्वरांगी साने की पसंद
कितना सुन्दर, विश्वसनीय आसरा...!
जवाब देंहटाएंआत्मसात होती हुई सी रचना।
जवाब देंहटाएंआत्मिक सुख -चैन दिलाती,
होंठों पर मुस्कान लाती
"मेरी भाषा" को सादर नमन।
लौटना अच्छा लगा
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