सोमवार, 18 सितंबर 2023

कवि साहिब

कवि साहिब
मैं पहली पंक्ति लिखता हूँ 
और डर जाता हूँ राजा के सिपाहियों से 
पंक्ति काट देता हूँ 

मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूँ 
और डर जाता हूँ बाग़ी गुरिल्लों से 
पंक्ति काट देता हूँ 
मैंने अपने प्राणों की ख़ातिर 
अपनी हज़ारों पंक्तियों को 
ऐसे ही क़त्ल किया है 
उन पंक्तियों की आत्माएँ 
अक्सर मेरे आसपास ही रहती हैं 
और मुझे कहती हैं -
कवि साहिब 
कवि हैं या कविता के क़ातिल हैं आप? 
सुने मुंसिफ़ बहुत इंसाफ़ के क़ातिल 
बड़े धर्म के रखवाले 
ख़ुद धर्म की पवित्र आत्मा को 
क़त्ल करते भी सुने थे 
सिर्फ़ यही सुनना बाक़ी था 
कि हमारे वक़्त में ख़ौफ़ के मारे 
कवि भी बन गए 
कविता के हत्यारे। 

- सुरजीत पातर।
पंजाबी से अनुवाद: चमनलाल 

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