शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

कॉपीराइट -1

नक़ली आदमी
सबसे ज़्यादा चिल्लाता है
कॉपीराइट! कॉपीराइट!
मैं अनुमति देता हूँ 
कि मेरे शब्द, मेरे चित्र,
मेरी पंक्तियाँ, मेरी कविताएँ 
मेरी कहानियाँ, मेरी किताबें,
मेरे विचार
कोई भी काम में ले सकता है।
चुरा सकता है।
पोस्टर छपवा सकता है।
उठा कर ले जा सकता है।
किसी भी भाषा में
तर्जुमा कर सकता है।
दिल से लगा सकता है या
फाड़ कर फेंक सकता है।
मैं निरर्थक शब्दों में
अर्थ डालते हुए,
बेजान तस्वीरों को
जीवित करते हुए,
बेसुरे स्वरों को साधते हुए
थक चुका हूंँ।
मैं अपने आप से थक चुका हूँ।
पाब्लो नेरुदा ने कहा था
कि मैं अपने मनुष्य होने से
थकता जा रहा हूँ। 
सिर्फ़ मेरे शब्द, चित्र, स्वर,
तरन्नुम, शैली, अदा ही नहीं -
कोई चाहे तो मुझे भी
उठा कर ले जा सकता है। 
बस इतना ध्यान रहे कि
मेरा दुरुपयोग असंभव है!

- कृष्ण कल्पित।
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प्रगति टिपणीस की पसंद

राजेंद्र गुप्ता के सौजन्य से 

1 टिप्पणी:

  1. थोथा चना बाजे घना. जो जितना हल्का सतही होता है, उतना ही विशेष एवं आसाधरण होने का दम्भ पाले रहता है. नतीजा यही, कि हर जगह अपनी अहमियत अपना वर्चस्व जताना ज़रूरी समझता है.
    बड़े बड़े साहित्यकार कह गये कि प्रकाशन के बाद कृति पर पाठकों का अधिकार हो जाता है. फिर यह चोरी का डर क्यों.
    एक बेहतरीन कृति...!

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