रविवार, 3 सितंबर 2023

हारे हुए लोग कहाँ जाएँगे

हारे हुए लोग कहाँ जाएँगे?? 

हारे हुए लोगों के लिए
कौन दुनिया बसाएगा? 
उन पराजित योद्धाओं के लिए,
तमाम शिकस्त खाए
लोगों के लिए।
प्रेम में टूटे हुए लोग,
सारी ज़िंदगी को कहीं
दाँव लगाकर हारे हुए लोग 
थके-हारे लोग,
गुमनाम लोग
वो बूढ़े पिता
जो अब अकेले रह गए हैं
वो कल्पनाओं में
खोया रहने वाला बच्चा 
जो परीक्षा में फेल हो गया है
वो लड़की जो तेज़ क़दमों से
घर की तरफ़ लौट रही है
वो बूढ़ा गुब्बारे वाला
जो काँपते हाथों से
पैसे गिनता है
एक असफल लेखक
मैच हार गया खिलाड़ी
इंटरव्यू से वापस लौटा
युवा
और ऐसे तमाम लोग
जिन्हें पता था कि वे
सफल हो सकते हैं
मगर उन्होंने असफलताओं से भरा रास्ता चुना,
वो लोग जिन्होंने
हमेशा ग़लत राह पर
चलने का जोखिम उठाया
वो लोग जिन्होंने
ग़लत लोगों पर
भरोसा किया
वो जिन्होंने
चोट खाई, धोखा खाया,
ठोकर खाई
गिरे
और धूल झाड़कर
खड़े हो गए 
वे कहाँ जाएँगे?
क्या कोई ऐसी दुनिया होगी
जहाँ दो हारे हुए इंसान
एक-दूसरे की हथेलियाँ थामे
कई पलों तक
ख़ामोश रह सकते हों 
अपनी चुप्पी में
तक़लीफ़ बाँटते हुए।
जिन्होंने इकारस की तरह 
सूरज की तरफ उड़ान भरी 
और उनके पंख पिघल गए
हारे हुए लोगों के लिए
कोई जगह नहीं है
न किसी घर में, न समाज में,
न किसी देश में।
क्या जो विजेता थे 
वो इनसे बेहतर हैं?
बेहतर थे?
नहीं,
वही हारा
जिसने ज़िंदगी की
अनिश्चितता पर यक़ीन किया
वही
जिसने अनजान रास्तों पर
चलने का जोखिम उठाया
जिसने ग़लती करनी चाही,
जो मक्कार चुप्पियों के पीछे
छिपा नहीं।
जो बोल सकता था
मगर बोला नहीं
उसने वो चुना जिसे चुनने का
कोई तर्क नहीं था
सिवाय
उसकी आत्मा के
जो हारा
आखिर वो भी
एक नायक था।
एक पराजित
नायक के दर्द को 
कौन समझना चाहेगा?
जाएँगे कहाँ
सूझता नहीं
चल पड़े
मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश है
कुछ पता नहीं
बुन रहे हैं दिल
ख़्वाब दम-ब-दम।

- दिनेश श्रीनेत।
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राजेंद्र गुप्ता के सौजन्य से।

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