शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

ग़ज़ल

ज़रा मोहतात होना चाहिए था 
बग़ैर अश्कों के रोना चाहिए था

अब उनको याद करके रो रहे हैं 
बिछड़ते वक़्त रोना चाहिए था

मिरी वादा-ख़िलाफ़ी पर वो चुप है 
उसे नाराज़ होना चाहिए था 

चला आता यक़ीनन ख़्वाब में वो 
हमें कल रात सोना चाहिए था 

सुई धागा मोहब्बत ने दिया था 
तो कुछ सीना पिरोना चाहिए था 

हमारा हाल तुम भी पूछते हो 
तुम्हें मालूम होना चाहिए था 

वफ़ा मजबूर तुमको कर रही थी 
तो फिर मजबूर होना चाहिए था 

- फ़हमी बदायूनी।
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मोहतात - सतर्क, सावधान।
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