गुरुवार, 21 सितंबर 2023

अनुवाद

लोगदूरजारहेहैं
(हरकोईहरकिसीसे दूर)-
लोगदूरजारहे हैं
औरबढ़रहाहै

मेरेआस-पासका‘स्पेस’!
इस‘स्पेस’काअनुवाद
'विस्तार'नहीं,'अंतरिक्ष'करूँगी मैं,
क्योंकिइसमेंमैंनेउड़नतश्तरीछोड़रखीहै।

समयकाधन्यवाद
किमेरीघड़ीबंदहै,
धन्यवादखिड़कीका
किऐनउसकेसीखचोंकेपीछे
गर्भवतीहैचिड़िया!
जोभीजहाँहैसबकाधन्यवाद
किइससमयमुझमेंसबहैं,
सबमेंमैंहूँथोड़ी-थोड़ी!
भाँय-भाँयबजाताहैहारमोनियम

मेराख़ालीघर!
इस‘ख़ाली’समयमें
बहुतकामहैं।
अभीमुझेघरकीउतरनोंका
अनुवादकरनाहोगा
जलकीभाषामें,
फिरजूठीप्लेटोंका
किसीश्वेतपुष्पकीपंखुड़ियोंमें
अनुवादकरूँगीमैं
फिरथोड़ीदेरखड़ीसोचूँगी
किएकझाग-भरेसिंकका
क्यामैंकभीकरसकूँगी
किसीरागमेंअनुवाद?
दरअसल,इसपूरेघरका
किसीदूसरीभाषामें
अनुवादचाहतीहूँमैं
परवहभाषामुझेमिलेगीकहाँ
सिवाउसभाषाके
जोमेरेबच्चेबोलतेहैं?
इसमेंहीहोजाएगीशाम,
औरइसशामकाअनुवाद
इतनाहीकरूँगीकिउठूँगी-

खोलदूँगीपर्दे!
अंतिमउजासकीछिटकीहुईकिर्चियाँ
पलभरमेंभरदेंगी
साराकासारास्पेस
औरफिरउसकाअनुवाद

‘अंतरिक्ष’नहीं,‘विस्तार’करूँगी मैं-
केवलविस्तार!

- अनामिका।
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संपादकीय पसंद

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक।एक पेचीदा दैनिकता के स्त्री समय का यही अनुवाद हो सकता है

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  2. ये कविता जिस तरह से हृदय को स्पर्श करती है उसे किसी भी भाषा में एक शब्द में अभिव्यक्त नहीं किया जाता... परत दर परत कविता खुलते हुए, पढ़ने वाले की परतें भी खोलती जाती है...

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  3. घर गृहस्थी की परतें, काव्य रस में घुलती धीरे-धीरे !

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  4. लाज़वाब सृजन। अंतरिक्ष नहीं विस्तार।

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