तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए
छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं
छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं
हम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत
तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठा कर फेंक दीं
जाने कैसी उँगलियाँ हैं, जाने क्या अंदाज़ हैं
तुमने पत्तों को छुआ था जड़ हिलाकर फेंक दी
इस अहाते के अँधेरे में धुआँ-सा भर गया
तुमने जलती लकड़ियाँ शायद बुझा कर फेंक दीं
- दुष्यंत कुमार।
------------------
हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंहम ही खा लेते सुबह को...कितनी गहराई लिए हुए है शेर! लाजवाब।
अति उत्तम
जवाब देंहटाएं