सोमवार, 25 सितंबर 2023

ग़ज़ल

तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए
छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं

हम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत
तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठा कर फेंक दीं

जाने कैसी उँगलियाँ हैं, जाने क्या अंदाज़ हैं
तुमने पत्तों को छुआ था जड़ हिलाकर फेंक दी

इस अहाते के अँधेरे में धुआँ-सा भर गया
तुमने जलती लकड़ियाँ शायद बुझा कर फेंक दीं

- दुष्यंत कुमार।
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

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