मैं एक ऐसे अभिनेता को जानता हूँ
जो स्टेशन पर उतरते ही
चलने लगता है मेरे साथ-साथ
बार-बार लपकता सामान की ओर
पूछता हुआ, ‘‘कहाँ जाना है भाई साहब?
चलो, रिक्शे में छोड़ देता हूँ,’’
उम्मीद की डोर से बँधा
अपनी घृणा को छुपाता हुआ
वह काफ़ी दूर चलता है मेरे पीछे-पीछे
भरी दुपहरी में
जब सब दुबके रहते हैं अपने-अपने घरों में
जो स्टेशन पर उतरते ही
चलने लगता है मेरे साथ-साथ
बार-बार लपकता सामान की ओर
पूछता हुआ, ‘‘कहाँ जाना है भाई साहब?
चलो, रिक्शे में छोड़ देता हूँ,’’
उम्मीद की डोर से बँधा
अपनी घृणा को छुपाता हुआ
वह काफ़ी दूर चलता है मेरे पीछे-पीछे
भरी दुपहरी में
जब सब दुबके रहते हैं अपने-अपने घरों में
उस बूढ़े अभिनेता का क्या कहना
बहुत दूर सड़क से
सुनाई पड़ती है उसकी डूबी हुई आवाज़
जो बच्चों के लिए कुल्फ़ी का गीत गाता है
बहुत दूर सड़क से
सुनाई पड़ती है उसकी डूबी हुई आवाज़
जो बच्चों के लिए कुल्फ़ी का गीत गाता है
एक लड़का मिलता है टॉकीज के पास
रास्ता चलते पकड़ लेता है हाथ
मैं भयभीत होता हूँ इस अभिनेता से
मैं डरता हूँ उसकी जलेबियों से
वह ज़िद्द के साथ कुछ खिलाना चाहता है मुझे
मेरे इनकार करने पर कहता है,
‘‘समोसे गरम हैं
कहो तो बच्चों के लिए बांध दूँ?’’
रास्ता चलते पकड़ लेता है हाथ
मैं भयभीत होता हूँ इस अभिनेता से
मैं डरता हूँ उसकी जलेबियों से
वह ज़िद्द के साथ कुछ खिलाना चाहता है मुझे
मेरे इनकार करने पर कहता है,
‘‘समोसे गरम हैं
कहो तो बच्चों के लिए बांध दूँ?’’
एक अभिनेता ऐसा है शहर में
जो कपड़ा दुकान के अहाते में
बैठा रहता है कुर्सी लगाए
हर आते-जाते को नमस्कार करता
दिनभर मुस्कुराता ही रहता है
और महीना-भर में
सात सौ रुपया पगार पाता है
जो कपड़ा दुकान के अहाते में
बैठा रहता है कुर्सी लगाए
हर आते-जाते को नमस्कार करता
दिनभर मुस्कुराता ही रहता है
और महीना-भर में
सात सौ रुपया पगार पाता है
गली, मोहल्लों, हाट, बाजार और सड़कों पर
हर कहीं टकरा ही जाते हैं ऐसे अभिनेता
पेट छुपाते हुए अपनी-अपनी भूमिकाओं में संलग्न
जीवन से ही सीखा है उन्होंने अभिनय
ज़रूरतों ने ही बनाया है उन्हें अभिनेता
ऐसा भी हो सकता है अपने पिता की उँगली पकड़
वे चले आएँ हो अभिनय की उस दुनिया में
पर उनका कहीं नाम नहीं
रोटी के सिवाय कोई सपना नहीं उनके पास
ऐसे कुछ लोग भी हैं इस समाज में
जो इन अभिनेताओं की करते हैं नकल
और बन जाते हैं सचमुच के अभिनेता।
हर कहीं टकरा ही जाते हैं ऐसे अभिनेता
पेट छुपाते हुए अपनी-अपनी भूमिकाओं में संलग्न
जीवन से ही सीखा है उन्होंने अभिनय
ज़रूरतों ने ही बनाया है उन्हें अभिनेता
ऐसा भी हो सकता है अपने पिता की उँगली पकड़
वे चले आएँ हो अभिनय की उस दुनिया में
पर उनका कहीं नाम नहीं
रोटी के सिवाय कोई सपना नहीं उनके पास
ऐसे कुछ लोग भी हैं इस समाज में
जो इन अभिनेताओं की करते हैं नकल
और बन जाते हैं सचमुच के अभिनेता।
- हरिओम राजोरिया।
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राजेंद्र गुप्ता के सौजन्य से
सचमुच यह दुनिया एक रंगमंच ही तो है और हम अभिनेता 🙏🙏👌👌
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअत्यंत गंभीर सोच में पगी रचना।
जवाब देंहटाएंहर कोई अपना रोल ही तो निभा रहा है इस संसार रंगमंच पर। ये अलग बात है कि किसी - किसी अभिनेता के हिस्से कई -कई रोल मजबूरी में भी मढ़ दिए जाते हैं जिन्हें वे आजीवन निभाते चले जाते हैं।
जवाब देंहटाएंहर कोई अपना रोल ही तो निभा रहा है इस संसार रंगमंच पर। ये अलग बात है कि किसी - किसी अभिनेता के हिस्से कई -कई रोल मजबूरी में भी मढ़ दिए जाते हैं जिन्हें वे आजीवन निभाते चले
जवाब देंहटाएंगज़ब की रचना. पेट भी कितना बड़ा मदारी है...!
जवाब देंहटाएंशब्द कम है इस कवि के कथन और शब्दों के समीकरण के लिए, सटीक चित्रण, साधुवाद
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