बस से, रेलगाड़ी से
एयरप्लेन, रिक्शा से
तेज़ मोटर साइकिल से
तुम ज़रा उतर देखो
आस-पास की चीज़ें
ग़ौर से ज़रा पढ़ लो
एयरप्लेन, रिक्शा से
तेज़ मोटर साइकिल से
तुम ज़रा उतर देखो
आस-पास की चीज़ें
ग़ौर से ज़रा पढ़ लो
शाख़ पर हरा पत्ता
दिल की शक्ल जैसा है
टहनियों की अलमारी
मोतियों का बक्सा है
रास्ते के हाथों में
पेड़ है या छाता है!
सेब, संतरा, जामुन
बेर और चेरी का
आम और इमली का
रास्ते में मक्की का
ज़ायक़ा ज़रा चख लो
सब्ज़ घास पर बैठो
नरम धूप को छू लो
सूर्य दिन के चरखे पर
रौशनी को बुनता है
हिज्र की हसीं नज़्में
इक सितारा सुनता है
तारकोल की सड़कों
अपने तेज़ क़दमों को
मोड़ दो पहाड़ों पर
है पहाड़ के सिर पे
तुर्की टोपी ग़ालिब की
बादलों में चरती है
भेड़ें अबू तालिब की
पीली धूप की चादर
घर की छत पे रखी है
ओढ़नी सितारों की
आस्मां ने ओढ़ी है
ये ज़मीन फूलों की
ओढ़नी सितारों की
आस्मां ने ओढ़ी है
ये ज़मीन फूलों की
रास्ते सबा के हैं
इक लकीर बिजली की
दस्तख़त ख़ुदा के हैं
इन हसीं मुनाज़िर को
भर लो अपने बस्ते में
फिर तुम्हें यक़ीं होगा
दिन तुम्हारी उँगली का
इक हसीं नगीना है
लम्हा-लम्हा जीना है
- जयंत परमार।
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प्रगति टिपणीस की पसंद
सोच का नया दृष्टिकोण,
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति 💕💕💕
जवाब देंहटाएंवाह वाह शब्दों का नाज़ुक सा घेरा बुन दिया है!
जवाब देंहटाएंसच में लम्हा लम्हा जीना है बहुत खूब
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