इस रौशनी में
थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है
जिसने चाक पर गीली मिट्टी रखकर
आकार दिया है इस दीपक को
थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है
जिसने चाक पर गीली मिट्टी रखकर
आकार दिया है इस दीपक को
इस रौशनी में
थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है
जिसने उगाया है कपास
तुम्हारी बाती के लिए
थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी
जिसके पसीने से बना है तेल
इस रौशनी में
थोड़ा-सा हिस्सा
उस अँधेरे का भी है
जो दिए के नीचे
पसरा है चुपचाप।
- मणि मोहन।
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वाआआआह...!
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