रविवार, 12 नवंबर 2023

रौशनी

इस रौशनी में 
थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है 
जिसने चाक पर गीली मिट्टी रखकर 
आकार दिया है इस दीपक को 

इस रौशनी में 
थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है 
जिसने उगाया है कपास 
तुम्हारी बाती के लिए 

थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी 
जिसके पसीने से बना है तेल 

इस रौशनी में 
थोड़ा-सा हिस्सा 
उस अँधेरे का भी है 
जो दिए के नीचे 
पसरा है चुपचाप।

- मणि मोहन।
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