देखना -
एक दिन चुक जाएगा
यह सूर्य भी,
सूख जाएँगें सभी जल
एक दिन,
हवा
चाहे मातरिश्वा हो
नाम को भी नहीं होगी
एक दिन,
नहीं होगी अग्नि कोई
और कैसी ही,
और उस दिन
नहीं होगी मृत्तिका भी।
मगर ऐसा दिन
सामूहिक नहीं है भाई!
सबका है
लेकिन पृथक् -
वह एक दिन,
हो रहा है घटित जो
प्रत्येक क्षण
प्रत्येक दिन -
वह एक दिन।
एक दिन चुक जाएगा
यह सूर्य भी,
सूख जाएँगें सभी जल
एक दिन,
हवा
चाहे मातरिश्वा हो
नाम को भी नहीं होगी
एक दिन,
नहीं होगी अग्नि कोई
और कैसी ही,
और उस दिन
नहीं होगी मृत्तिका भी।
मगर ऐसा दिन
सामूहिक नहीं है भाई!
सबका है
लेकिन पृथक् -
वह एक दिन,
हो रहा है घटित जो
प्रत्येक क्षण
प्रत्येक दिन -
वह एक दिन।
- नरेश मेहता।
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बिनीता सहाय की पसंद
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