रविवार, 26 नवंबर 2023

ये खेल क्या है?

मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है 
और अब 
मेरी चाल के इंतज़ार में है 
मगर मैं कब से 
सफ़ेद ख़ानों 
सियाह ख़ानों में रक्खे 
काले-सफ़ेद मोहरों को देखता हूँ 
मैं सोचता हूँ 
ये मोहरे क्या हैं

अगर मैं समझूँ 
कि ये जो मोहरे हैं 
सिर्फ लकड़ी के हैं खिलौने 
तो जीतना क्या है हारना क्या 
न ये ज़रूरी 
न वो अहम है 
अगर ख़ुशी है न जीतने की 
न हारने का ही कोई ग़म है

तो खेल क्या है
मैं सोचता हूँ
जो खेलना है
तो अपने दिल में यकीन कर लूँ
ये मोहरे सचमुच के बादशाहो-वज़ीर
सचमुच के हैं प्यादे 
और इनके आगे है
दुश्मनों की वो फ़ौज
रखती है जो कि मुझको तबाह करने के
सारे मनसूबे
सब इरादे
मगर मैं ऐसा जो मान भी लूँ
तो सोचता हूँ
ये खेल कब है
ये जंग है जिसको जीतना है
ये जंग है जिसमें सब है जायज़ 
कोई ये कहता है जैसे मुझसे 
ये जंग भी है
ये खेल भी है
ये जंग है पर खिलाड़ियों की 
ये खेल है जंग की तरह का 
मैं सोचता हूँ
जो खेल है
इसमें इस तरह का उसूल क्यों है
कि कोई मोहरा रहे कि जाए

मगर जो है बादशाह 
उस पर कभी कोई आँच भी न आए 
वज़ीर ही को है बस इजाज़त 
कि जिस तरफ़ भी वो चाहे जाए

मैं सोचता हूँ 
जो खेल है 
इसमें इस तरह का उसूल क्यों है 
प्यादा जो अपने घर से निकले 
पलट के वापस न जाने पाए 
मैं सोचता हूँ 
अगर यही है उसूल 
तो फिर उसूल क्या है 
अगर यही है ये खेल 
तो फिर ये खेल क्या है 
मैं इन सवालों से जाने कब से उलझ रहा हूँ 
मिरे मुखालिफ ने चाल चल दी है 
और अब मेरी चाल के इंतज़ार में है

- जावेद अख़्तर।
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