सोमवार, 13 नवंबर 2023

नेता जी लगे मुस्कुराने

एक महाविद्यालय में
नए विभाग के लिए
नया भवन बनवाया गया,
उसके उद्घाटनार्थ
विद्यालय के एक पुराने छात्र
लेकिन नए नेता को
बुलवाया गया।

अध्यापकों ने
कार के दरवाज़े खोले
नेती जी उतरते ही बोले -
यहाँ तर गईं
कितनी ही पीढ़ियाँ,
अहा!
वही पुरानी सीढ़ियाँ!
वही मैदान
वही पुराने वृक्ष,
वही कार्यालय
वही पुराने कक्ष।
वही पुरानी खिड़की
वही जाली,
अहा, देखिए
वही पुराना माली।
मंडरा रहे थे
यादों के धुंधलके
थोड़ा और आगे गए चल के -
वही पुरानी
चिमगादड़ों की साउंड,
वही घंटा
वही पुराना प्लेग्राउंड।
छात्रों में
वही पुरानी बदहवासी,
अहा, वही पुराना चपरासी।
नमस्कार, नमस्कार!
अब आया हॉस्टल का द्वार -
हॉस्टल में वही कमरे
वही पुराना ख़ानसामा,
वही धमाचौकड़ी
वही पुराना हंगामा।

नेता जी पर
पुरानी स्मृतियाँ छा रही थीं,
तभी पाया
कि एक कमरे से
कुछ ज़्यादा ही
आवाज़ें आ रही थीं।
उन्होंने दरवाजा खटखटाया,
लड़के ने खोला
पर घबराया।
क्योंकि अंदर एक कन्या थी,
वल्कल-वसन-वन्या थी।
दिल रह गया दहल के,
लेकिन बोला संभल के -
आइए सर!
मेरा नाम मदन है,
इससे मिलिए
मेरी कज़न है।

नेता जी लगे मुस्कुराने
वही पुराने बहाने

- अशोक चक्रधर।
------------------

विजया सती के सौजन्य से 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें