देखने के बिंदु पर -
एक फूल
सुनने के तट पर -
एक वाद्य
स्पर्श के क्षितिज पर -
एक देह
स्वाद की पहुँच पर -
एक फल
घ्राण के व्यास पर -
एक सुगंध
और स्मरण के आकाश में -
कुछ बीते हुए पल,
एक फूल
सुनने के तट पर -
एक वाद्य
स्पर्श के क्षितिज पर -
एक देह
स्वाद की पहुँच पर -
एक फल
घ्राण के व्यास पर -
एक सुगंध
और स्मरण के आकाश में -
कुछ बीते हुए पल,
ऐसे न जाने कहाँ-कहाँ
किन-किन रूपों में भटकना होता है
और तब जाकर अभिहित होती है -
एक कविता
- नरेश मेहता।
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बिनीता सहाय की पसंद
अत्यंत भावपूर्ण सृजन🙏🙏
जवाब देंहटाएंकविता के आविर्भाव की व्याख्या कितनी यथार्थ और स्वाभाविक है। अत्यंत आकर्षक भाव!
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