दुकान पर नहीं गया
दुकान पर गया
क्योंकि थोड़ी देर दुकान पर बैठने का मन था
दुकान पर आते-जाते लोगों को देखना था
उनकी बातें सुननी थी
और मुझे चुप रहना था
चाय को उबलते हुए
और उसे कुल्हड़ में छनते हुए देखना था
मुझे थोड़ी देर के लिए
अपने घर, कुर्सी, दरवाज़े को भूलना था
अपने कामों को भूलना था
और खुद को भूलना था
इसलिए गया चाय की दुकान पर
मुझे चाय की तलब कभी नहीं लगती
हाँ घर से निकलने की तलब लगती है
- संदीप तिवारी।
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विजया सती के सौजन्य से
जड़ता से जीवन की ओर, प्रस्थान का सुन्दर वर्णन...!
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