गुरुवार, 15 अगस्त 2024

ऐसा संबंध जिया हमने

ऐसा संबंध जिया हमने
जिसमें कोई अनुबंध नहीं,
नवगीत रचा ऐसा जिसमें,
हो पूर्वनियोजित छंद नहीं।

जब-जब जैसा महसूस किया
स्वीकार किया वैसा-वैसा,
जग की आचार संहिता को
लग जाए भले कैसा-कैसा,
हमने हर वचन निभाया पर,
खाई कोई सौगंध नहीं।

गंगा यमुना के संगम पर
कितने ही मंगल स्नान किए,
शुभ की अभिलाषा में खींचे
रेती पर सँतिए ही सँतिए
प्राणों ने मंत्र पढ़े लेकिन
भाँवर का किया प्रबंध नहीं।

सारा का सारा देकर के
पूरा-पूरा अधिकार मिला,
लोहे के एक-एक कण को
पारस का पावन प्यार मिला,
साँसों की सोनजुही ने फिर
दोहराया वह आनंद नहीं।

ऐसा संबंध जिया हमने
जिसमें कोई अनुबंध नहीं।

- डॉ० कीर्ति काले
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