रविवार, 18 अगस्त 2024

चिकने लंबे केश

चिकने लंबे केश
काली चमकीली आँखें
खिलते हुए फूल के जैसा रंग शरीर का
फूलों ही जैसी सुगंध शरीर की
समयों के अंतराल चीरती हुई
अधीरता इच्छा की
याद आती हैं ये सब बातें
अधैर्य नहीं जागता मगर अब
इन सबके याद आने पर

न जागता है कोई पश्चाताप
जीर्णता के जीतने का
शरीर के इस या उस वसंत के बीतने का

दुख नहीं होता
उलटे एक परिपूर्णता-सी
मन में उतरती है

जैसे मौसम के बीत जाने पर
दुख नहीं होता
उस मौसम के फूलों का!

- भवानीप्रसाद मिश्र
---------------------

हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें