गुरुवार, 22 अगस्त 2024

यक़ीनों की ज़ल्दबाज़ी से

एक बार ख़बर उड़ी
कि कविता अब कविता नहीं रही 
और यूँ फैली
कि कविता अब नहीं रही!

यक़ीन करने वालों ने यक़ीन कर लिया 
कि कविता मर गई 
लेकिन शक करने वालों ने शक किया 
कि ऐसा हो ही नहीं सकता 
और इस तरह बच गई कविता की जान

ऐसा पहली बार नहीं हुआ 
कि यक़ीनों की जल्दबाज़ी से 
महज़ एक शक ने बचा लिया हो 
किसी बेगुनाह को।

- कुँवर नारायण
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संपादकीय चयन 

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