मंगलवार, 30 अप्रैल 2024
विचार आते हैं
सोमवार, 29 अप्रैल 2024
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
रविवार, 28 अप्रैल 2024
आम और पत्तियाँ
शनिवार, 27 अप्रैल 2024
टेढ़ी-मेढ़ी चाल
सीधा चलने से
परहेज़ नहीं है
मगर
ऐसे टेढ़े-मेढ़े
चलने से
टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगता है
चाँद भी।
युगों-युगों से
सीधी चली आ रही
सड़क में भी
आ जाता है
हल्का-सा टेढ़ापन
और इसी टेढ़ेपन में
ज़िंदा रह जाते हैं
कुछ मुहावरे
बिखराव के।
- अर्पिता राठौर।
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संपादकीय चयन
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही
गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
क्या तुम जानते हो?
क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न
एक स्त्री का एकांत?
घर, प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन
के बारे में बता सकते हो तुम?
बता सकते हो
सदियों से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को
उसके घर का पता?
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में
किस तरह एक ही समय में
स्वयं को स्थापित और निर्वासित
करती है एक स्त्री?
सपनों में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तों के कुरुक्षेत्र में
अपने आपसे तड़ते?
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गाँठें खोल कर
कभी पढ़ा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास?
पढ़ा है कभी
उसकी चुप्पी की दहलीज़ पर बैठ
शब्दों की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को?
उसके अंदर वंशबीज बाते
क्या तुमने कभी महसूसा है
उसकी फैलती जड़ों को अपने भीतर?
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण?
बता सकते हो तुम
एक स्त्री को स्त्री-दृष्टि से देखते
उसके स्त्रीत्व की परिभाषा?
अगर नहीं!
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में...?
- निर्मला
पुतुल
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संपादकीय चयन
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
माँएँ
मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा
सोमवार, 22 अप्रैल 2024
दिन गीत-गीत हो चला
रविवार, 21 अप्रैल 2024
सृजन बिकने नहीं देंगे
शनिवार, 20 अप्रैल 2024
सफलता पाँव चूमे
शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
रसोई
गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
यात्री-मन
बुधवार, 17 अप्रैल 2024
लिखी हुई संदिग्ध भूमिका
मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
छंद को बिगाड़ो मत
सोमवार, 15 अप्रैल 2024
धूप का गीत
रविवार, 14 अप्रैल 2024
इक नज़्म
शनिवार, 13 अप्रैल 2024
उषा की लाली
शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024
नीम
गुरुवार, 11 अप्रैल 2024
कृतज्ञता
बुधवार, 10 अप्रैल 2024
अपने घर में ही अजनबी की तरह
मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
औरतें और हम
सोमवार, 8 अप्रैल 2024
इच्छा
रविवार, 7 अप्रैल 2024
तू इतना प्यार न कर मुझसे
शनिवार, 6 अप्रैल 2024
बड़े बेख़ौफ़ होकर आज पंछी डोलते हैं
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024
अँधेरों के विरुद्ध
गुरुवार, 4 अप्रैल 2024
पगडंडी
बुधवार, 3 अप्रैल 2024
पहाड़ों के अप्रैल के ज़ख़्मों का क़सीदा
सात काफल के पेड़ों पर फल आ चुके हैं।
सुर्ख लाल फूलों से लदे बुरांश की सघनता में
एक मुनाल टहनियों पर फुदक रहा है।
बांज के जंगलों की गहरी छाया में
झींगुरों की एकरस आवाज़ें हैं।
चिंतनरत सरू और देवदारु के
पेड़ों के बीच से झाँकती हैं बर्फीली चोटियांँ
रह-रहकर बादल उन्हें छेड़ रहे हैं
पहाड़ों में अप्रैल के सुनसान में
प्यार करने,
बेवफ़ाइयों की विवशता को याद करने
और टीसते हृदय में
तपती चमकती कटार घोंपकर
हाराकीरी करने के बारे में
सोचा जा सकता है
गिरफ़्त में फँसकर।
सहसा बज उठता है मोबाइल
मानवीय तुच्छताओं की याद दिलाते हुए,
एक दार्शनिक मृत्यु और स्वार्थपूर्ण प्यार के
ऐन्द्रजालिक आकर्षण से उबारते हुए
और यह याद दिलाते हुए कि
कल सुबह नीचे मैदानों की ओर रवाना हो जाना है
जीवन की ठोस वास्तविकताओं की ओर।
तुच्छताओं के बीच
उदात्तता की खोज जारी रहे
और जीवन में थोड़ी कविता
हर सूरत में बची रहे,
ऐसा सोचना भी
इतिहास-बोध का ही एक हिस्सा है।
- कात्यायनी।
- काफल - पहाड़ का एक फल जो बेर जैसा होता है।
- मुनाल - एक पक्षी
- बांज - पहाड़ में एक वृक्ष का नाम जैसे चीड़, देवदार।
मंगलवार, 2 अप्रैल 2024
हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम तो इश्क बोते हैं
सोमवार, 1 अप्रैल 2024
मेरे स्वर में स्वर यदि दोगे
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बात सीधी थी पर एक बार भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फँस गई। उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा पलटा तोड़ा मरोड़ा घुमाया फिराया कि बात या तो ब...
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पत्थरों में कचनार के फूल खिले हैं इनकी तरफ़ देखते ही आँखों में रंग छा जाते हैं मानो ये चंचल नैन इन्हें जनमों से जानते थे। मानो हृदय ही फूला...
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चेतना पारीक कैसी हो? पहले जैसी हो? कुछ-कुछ ख़ुश कुछ-कुछ उदास कभी देखती तारे कभी देखती घास चेतना पारीक, कैसी दिखती हो? अब भी कविता लिखती हो? ...