मैं
तुमसे मिलने आई
प्रेम
की उद्दाम कामना लिए
अँगारों
पर लोटती नायिका की भाँति अभिसार के लिए नहीं
अपने
भीतर भरे आदिम भय से मुक्ति की चाहत लिए आई
मैं
आई विद्रोह लिए आई
रूढ़ियों, ऑनर किलिंग, बलात्कारी
हत्याओं, मौरल पुलिसिंग के ठेकेदारों को यह
दिखाती आई
कि
प्रेम अंतत: प्रेम है
तुम
लाख नफ़रत फैला लो
जीतेगा
अंततः प्रेम ही
रंग, रक्त, धर्म, वक़्त
कितना
ही विलगालो
जीतेगा
बस प्रेम ही।
- कल्पना पंत
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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