सूरज
डूब जाएगा
तो कुछ ही देर में चाँद निकल आएगा
और नहीं हुआ चाँद
तो आसमान में तारे होंगे
अपनी दूधिया रौशनी बिखेरते हुए
और
रात अँधियारी हुई बादलों भरी
तो भी हाथ-पैर की उँगलियों से टटोलते हुए
धीरे-धीरे हम रास्ता तलाश लेंगे
और टटोलने को कुछ न हुआ आसपास
तो आवाज़ों से एक-दूसरे की थाह लेते
एक ही दिशा में हम बढ़ते जाएँगे
और आवाज़ देने या सुनने वाला कोई न हुआ
तो अपने मन के मद्धिम उजास में चलेंगे
जो वापस फिर-फिर हमें राह पर लाएगा
और
चलते-चलते जब इतने थक चुके होंगे कि
रास्ता रस्सी की तरह ख़ुद को लपेटता दिखेगा
आगे बढ़ना भी पीछे हटने जैसा हो जाएगा
तब कोई याद हमारे भीतर से उठती हुई आएगी
और खोई ख़ामोशियों में गुनगुनाती हुई
हमें मंज़िल तक पहुँचा जाएगी।
तो कुछ ही देर में चाँद निकल आएगा
और नहीं हुआ चाँद
तो आसमान में तारे होंगे
अपनी दूधिया रौशनी बिखेरते हुए
तो भी हाथ-पैर की उँगलियों से टटोलते हुए
धीरे-धीरे हम रास्ता तलाश लेंगे
और टटोलने को कुछ न हुआ आसपास
तो आवाज़ों से एक-दूसरे की थाह लेते
एक ही दिशा में हम बढ़ते जाएँगे
और आवाज़ देने या सुनने वाला कोई न हुआ
तो अपने मन के मद्धिम उजास में चलेंगे
जो वापस फिर-फिर हमें राह पर लाएगा
रास्ता रस्सी की तरह ख़ुद को लपेटता दिखेगा
आगे बढ़ना भी पीछे हटने जैसा हो जाएगा
और खोई ख़ामोशियों में गुनगुनाती हुई
हमें मंज़िल तक पहुँचा जाएगी।
- चंद्रभूषण
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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