नहीं, कविता रचना नहीं
सुबूत है कि
मैंने अपने को रचा है।
मैं ही तो हो गया होता हूँ शब्द
फुफकारते समुद्र में लील लिया जाकर भी
सुबह के फूल-सा खिल आता हुआ।
फूल में फूटकर
अपने को ही तो रच रहा होता है पेड़!
अरे!
तो क्या तुम भी
मुझे रचकर ही
ख़ुद को रच पाते हो?
- नंदकिशोर आचार्य
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संपादकीय चयन
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