बाबा नाहीं दूजा कोई।
एक अनेकन नाँव तुम्हारे, मो पैं और न होई॥टेक॥
अलख इलाही एक तूँ तूँ हीं राम रहीम।
तूँ हीं मालिक मोहना, कैसो नाँउ करीम॥१॥
साँई सिरजनहार तूँ, तूँ पावन तूँ पाक।
तूँ काइम करतार तूँ, तूँ हरि हाजिर आप॥२॥
रमिता राजिक एक तूँ, तूँ सारँग सुबहान।
कादिर करता एक तूँ, तूँ साहिब सुलतान॥३॥
अविगत अल्लह एक तूँ, गनी गुसाईं एक।
अजब अनूपम आप है, दादू नाँव अनेक॥४॥
- दादू दयाल
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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