गुरुवार, 7 नवंबर 2024

हाथ में रख इस हृदय को

आज तुम मुझको बुलाओ

और मैं आऊँ प्रिये !

हाथ में रख इस हृदय को

साथ मैं लाऊँ प्रिये !

 

 ये हवायें, वादियाँ ये

छेड़ती हैं तान जैसे !

फूल,कलियाँ और पंछी

गा रहे सब गान जैसे !

यदि सुनो तुम मन लगाकर

ज़िन्दगी का गीत कोई

आज मैं गाऊँ प्रिये !

 

पाँव में रच दूँ महावर

मैं तुम्हारे, तुम कहो तो !

तोड़ मैं लाऊँ गगन से

सब सितारे, तुम कहो तो !

तुम कहो तो अंक भरकर

लाज अधरों पर तुम्हारे

फिर सजाऊँ मैं प्रिये !

 

मोह लेता है मुझे ये

केश का खुलना,बिखरना !

खनखनाना चूड़ियों का

और ये सजना सँवरना !

यदि न मानों तुम बुरा तो

कर दूँ अर्पित स्वयं को फिर

मैं तुम्हें पाऊँ प्रिये!

- चन्द्रगत भारती

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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 


 

 

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