न आसमान में धुआँ रुके कहीं
न एक दीपवर्तिका झुके कहीं
उठो, कि जागरण प्रभात हो चला
निहार लो कि ये धरा बदल रही
न सामने शिला बने अड़े रहो
न युग प्रवाह रोक कर खड़े रहो
निहार लो कि ये प्रशस्त पथ खुले
कि ये नवीन जाह्नवी उछल रहा
न यूँ तने रहो कि लो जड़ें हिलीं
नवीन प्राण के लिए किरण खिली
निहार लो कि मुक्त हो बहा पवन
कि ये नवीन पौध फूल फल रही।
- नंद चतुर्वेदी
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संपादकीय चयन
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