मंगलवार, 26 नवंबर 2024

उलझन

चुप-से हैं पर
गहरी उलझन में हैं शब्द
क्या करें वे मेरा

मुझ अपंग का
जो निवेदित है उन्हें

ले चलें
मेरी बैसाखी बनकर
या घिसटने दें
इस ऊबड़-खाबड़ धरती पर
मुझको
मेरे ज़ख़्मों से रिसते हुए।

 - नंदकिशोर आचार्य
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संपादकीय चयन 

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