सोमवार, 14 जुलाई 2025

जेठ तपा मधुमास

संदर्भों के होठ सिले हैं

व्याख्या हुई उदास

किस प्रसंग की बात कर रहा

जेठ तपा मधुमास


आँगन की बौराई बिल्ली

तुलसी घेर रही

चींटी बाँध बनाकर गाए

बाढ़ तुम्हारी आस


ऐसी पुरुवा बही रात भर

बादल सुलग गए

पछुआ ने सूरज से पूछा

कहाँ रहोगे आज

    

दूब जली, मेंहदी झुलसाई

दुल्हन सेज सजी

कैसा सावन आने वाला

जिससे लगती लाज


राग गड़ रही, गीत चुभ रहे

सगुन धुआँ के गाँव

आँझ पराती आँसू-आँसू

आँख लगे नाराज

    

आना अबके लगन लगे है

अगन-मनन की ओर

रुँध गई देहरी गगन की

ऐसी है आवाज़ 


चाँद सितारे नाच न पावें

नदी न गाए गीत

झरनों ने संगीत हड़प ली

पर्वत पी गए साज

    

संदर्भों के होठ सिले हैं

व्याख्या हुई उदास

किस प्रसंग की बात कर रहा

जेठ तपा मधुमास


 - संजय तिवारी

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संपादकीय चयन