संदर्भों के होठ सिले हैं
व्याख्या हुई उदास
किस प्रसंग की बात कर रहा
जेठ तपा मधुमास
आँगन की बौराई बिल्ली
तुलसी घेर रही
चींटी बाँध बनाकर गाए
बाढ़ तुम्हारी आस
ऐसी पुरुवा बही रात भर
बादल सुलग गए
पछुआ ने सूरज से पूछा
कहाँ रहोगे आज
दूब जली, मेंहदी झुलसाई
दुल्हन सेज सजी
कैसा सावन आने वाला
जिससे लगती लाज
राग गड़ रही, गीत चुभ रहे
सगुन धुआँ के गाँव
आँझ पराती आँसू-आँसू
आँख लगे नाराज
आना अबके लगन लगे है
अगन-मनन की ओर
रुँध गई देहरी गगन की
ऐसी है आवाज़
चाँद सितारे नाच न पावें
नदी न गाए गीत
झरनों ने संगीत हड़प ली
पर्वत पी गए साज
संदर्भों के होठ सिले हैं
व्याख्या हुई उदास
किस प्रसंग की बात कर रहा
जेठ तपा मधुमास
- संजय तिवारी
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संपादकीय चयन